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रविवार, 23 सितंबर 2012

सुर-क्षेत्र कहीं बन न जाए कुरु क्षेत्र !

                  वैसे तो टीवी सीरियल देखने का समय कम ही रहता है ठीक वैसे ही मैं क्रिकेट मैच देखने के विषय में कह सकती हूँ  क्योंकि मैं जिस क्षेत्र में रहती हूँ वह संवेदनशील क्षेत्र की श्रेणी में आता है , जो कुछ विस्फोटों का गवाह  है .  जब भारत और पाकिस्तान का मैच होता है तो एक सन्नाटा होता है और कोई भी जीते  पटाखों की गूँज आपको समाप्ति पर बेतहाशा सुने देगी।  मानसिक तौर  पर एक शीत युद्ध  स्थिति  दिखलाई  देती है। सिर्फ हम यहीं क्यों कहें ? ऊपर से हम कितनी ही मित्रता की हामी भरें लेकिन इससे आगे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। 
                  अब पिछले हफ्ते से कलर टीवी पर सुर-क्षेत्र एक गायन का सीरियल शुरू हुआ है। भारत और पाकिस्तान के सुर के बादशाह इसमें आमने सामने  हैं और इनकी अगुआई के लिए हैं - पाकिस्तान के आतिफ जी और भारत के हिमेश रेशमिया जी। इसको जरूर मैं ध्यान से देख रही हूँ। यद्यपि सुरों के विषय में  विशेष जानकारी नहीं है लेकिन गायन तो सिर्फ सुनने से ही पता चल जाता है कि  किधर जा रहा है और लोकप्रिय गानों के विषय में एक इमेज  तो अपने सामने होती ही है। ये प्रोग्राम कल से शुरू हुआ है और मुझ जैसे अनाड़ी  आदमी को ये लगने लगा है कि  दोनों टीम के कैप्टन में पाकिस्तानी टीम के श्री आतिफ जी की जो प्रतिक्रिया भारतीय गाने वालों के लिए होती है , उससे जो झलकता है वो मैं खुद नहीं कहना चाहती हूँ , क्योंकि इसको देखने वाले खुद ही महसूस कर सकते हैं। उन्हें किसी भी भारतीय गायक में बिना कमी निकाले समीक्षा नहीं की। भारत की नीतियों के तहत हिमेश रेशमिया जी ने अपने आपको बहुत संयत और संतुलित होकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। वैसे दोनों ही दलों के कैप्टेन को संयत और संतुलित होना चाहिए क्योंकि सारे  प्रतिभागी उनके अनुसार बराबर हैं। . 
                    आज जज के तौर उन्होंने आशा भोंसले जी पर जो उंगली उठाई और उसके एवज में आशा जी का या कहना कि ' मुझे लगता है कि  मैं इस कुर्सी के काबिल नहीं हूँ। ' इस बात का द्योतक है कि  ये अभी आरम्भ में इस तरह से आरोप वह भी भारतीय जज पर क्या प्रदर्शित करता है? यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच जमीनी सरहदों  को ख़त्म करने का ये प्रयास कहीं सुर-क्षेत्र को कुरु क्षेत्र में परिवर्तित न कर दे। हम कितना भी तटस्थ रहे लेकिन वह भावना जो किसी के दिल में रहती है बातों  में झलकने लगती है तो कष्ट होता है। मेरे विचार से ये कार्यक्रम अगर तटस्थ होकर सम्पन्न हो तो ये दोनों ही देशों के हित में है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. यह कार्यक्रम देखा तो नहीं ...जो भी जाना आपके लेख से ही जाना .... वैसे ऐसे शो सब प्रायोजित होते हैं ।

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  2. पता नहीं पाकिस्तान को लेकर हम इतने अधीर हुये जाते हैं।

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  3. अरे यह सब तय नौटंकी है...नौटंकी करानेवालों को सोचना चाहिए कि प्रतिष्ठित लोगों से ऐसी बात न कहलवाए ... इससे कम बुद्धिवालों का ही मनोरंजन होता है

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    1. आपका कहना सही है रश्मि जी, लेकिन ईन सब को देखता कौन है? मन में वैमनस्व कैसे भरता है . हर कोई इस बात से वाकिफ नहीं होता है कि ये सिर्फ TRP के लिए किया जाता है. एक गलत सन्देश तो देता ही है साथ ही एक गलत छवि भी बन जाती है.

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  4. इस सीरियल के पहले संस्करण को भी मैंने देखना छोड़ दिया था। इसका स्क्रिप्ट बड़ा घटिया होता है। इसमें बेबात की लड़ाई होती रहती है। इसबार भी उसी घटिया मसाले को दुहराया जा रहा है। ये सारे स्क्रिप्ट, लगता है, पहले से लिखे होती हैं।
    कोई छोड़ कर नहीं जाता। सब टीआरपी का खेल है। स्क्रिप्ट पढ़ रहे होते हैं, सब के सब।

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  5. वास्‍तव में यह सब नौटंकी है, दर्शक खेंचने के लिए। ऐसा सनसनीखेज कुछ कर दो कि पूरे देश में चर्चा हो और इसे लोग देखे।

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  6. यहाँ सब कुछ पहले से तय कर दिया जाता हैं ......सब ड्रामा है

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    1. अजित जी , अंजू और संगीता जी मैं इस बात से सहमत हूँ कि हमें ये बात पता है कि सब कुछ पहले से स्क्रिप्ट के अनुसार ही होता है और ये सिर्फ एक तमाशा भर है लेकिन हर आदमी इससे वाकिफ नहीं होता है और इसके बाद एक गलत सन्देश जा रहा है. मुंबई में कलर्स के ऑफिस पर हमला पहले ही हो चुका है. भारत और पाकिस्तान के मैच देखने वाले कितने बारीकियों से वाकिफ होते हैं फिर भी कुछ न कुछ ऐसा हर बार घटित होता है.

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  7. india pakistan joint programs should not be held
    i am unable to stand with pakistan even if they do well

    my patriotism is very deep

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