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बुधवार, 2 अप्रैल 2014

मतदाता इच्छापत्र !

                                        
 

           देश इस समय एक परिवर्तन के मोड़ पर , परिवर्तन की आस में खड़ा है और इस परिवर्तन के परिवर्तक बनेंगे  - हमारे देश के मतदाता।  वर्षों से देश की स्थिति जैसी चल  रही है , उससे आम आदमी या कहिये देश का मतदाता जो कभी कपडे, पैसे या अन्य भौतिक चीजों से खरीद लिया जाता था -  अब जागरूक हो चूका  है। सत्तारूढ़ दल अपनी उपलब्धियों को बढ़ाचढ़ा कर गिना रहे हैं , उनकी पोल मतदाता जान रहा है  इसी लिए वे मन ही मन घबराये हुए हैं।  कुछ दलों की हवा भरते ही फुस्स हो गयी , उनके वादे और इरादे अब समझने की जरूरत ही नहीं रह गयी है।  जो विपक्षी हैं, वे अपने को काबिल समझाने  की कोशिश कर रहे हैं जैसे मतदाता ६७ सालों में उन्हें समझ नहीं पाया है।  फिर भी लोकतंत्र है तो सरकार तो इन्ही दलों में से किसी की बनानी पड़ेगी फिर  हम मतदाता उनके घोषणा पत्रों के साथ अपना इच्छा पत्र उनके सामने रखें और पूछें कि क्या उनमें से कोई भी हमारे इच्छा पत्र को सम्मान देगा या फिर इसको पूरा करने का वादा करता है?  अगर हाँ तो फिर हम उसे चुनने को राजी हैं --
१. चुनाव में अपने घोषणा पत्र में दिए गए आश्वासनों को वे कितने दिनों में पूरा करने का वादा करते हैं।  कहीं सब्ज बाग़ दिखा करआगे  एक बार और चुनने का अवसर  तो नहीं चाहिए । 
२. आरोपी नेताओं को पार्टी से हटाने के बारे में उनके क्या विचार हैं ?
३. हर बड़ी पार्टी के पास अपनी संपत्ति करोड़ों में है , उसे देश में आयी किसी भी विपत्ति पर कितने प्रतिशत व्यय करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ? 
४. सांसदों और विधायकों के लिए शिक्षा और आयु सीमा निश्चित की जानी  चाहिए। 
५ महिला आरक्षित सीट पर सुयोग्य महिला को टिकट मिलना चाहिए न कि बिहार की तरह बागडोर पत्नी  थमा कर पीछे से पतिदेव हांक रहे हैं।  
६. नेताओं के परिवार के किसी न किसी सदस्य को सेना में जरूर जाना चाहिए तभी ये सैनिकों के घर वालों के मन की उहापोह और विकलता को अनुभव कर पाएंगे और अनर्गल बयानबाजी कभी नहीं करेंगे। 
७. जिस क्षेत्र से ये चुनाव लड़े वहाँ पर इन्हें संसद सत्र के दिनों को छोड़ कर कुछ दिनों रहना अनिवार्य किया जाय और जन समस्याओं को सुनने का समय देना होगा।  
८. उनके घोषणा पत्र के किसी भी घोषणा के पूर्ण न होने पर उस विषय में मतदाता को उनसे सवाल पूछने का अधिकार होना चाहिए।  
९. उनके पद का लाभ सिर्फ उनकी पत्नी और नाबालिग बच्चों को प्राप्त होना चाहिए बालिग़ और आत्मनिभर बच्चों को सांसद या विधायक कोटे का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
१० जो जन प्रतिनिधि है - वह सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर चुने गए हैं अतः उनको प्राप्त सरकारी सुविधाओं का वहन  सिर्फ वही करेंगे। 
११. सांसद निधि या विधायक निधि प्राप्त होने के बाद उसको विकास कार्यों में लगाने की समय सीमा तय की जाए और कार्यों की प्राथमिकता तय की जाय न कि शहर की सड़कें खस्ता हाल हैं और सुंदरीकरण के लिए करोड़ों की धनराशि जारी कर दी जाय। 
१२. स्थानीय मूलभूत आवश्यकताओं के प्रति उन्हें उत्तरदायी माना जाएगा।  
 १३.  अपने कार्यकाल में उनकी बढती हुई संपत्ति का उन्हें व्योरा देना होगा कि किन स्रोतों से ये धन बढ़ा है और उसके लिए वे नियमानुसार आयकर दे रहे हैं या नहीं।  
१४.  किसी भी अपराधिक मामले में वे अपने प्रभाव का  अपराधी को छुड़ाने के लिए प्रयोग नहीं करेंगे और अगर ऐसा होता है तो मतदाता स्थानीय लोगों के चरित्र से भलीभांति परिचित होता है तो माननीय के लिए भी कोई धारा  निश्चित होनी चाहिए।
१५. सरकार या नेता जो दल हित या फिर अपने समूह ( सांसद , विधायक ) हित के लिए क़ानून में परिवर्तन कर विधेयक लाते हैं तो उस पर किसी न किसी तरीके से मतदाताओं की राय जाननी होगी।  कोई भी विधेयक जनप्रतिनिधि होते ही उनकी मर्जी से नहीं थोपा जाएगा।  
१६  लोकतंत्र के तीनों स्वतन्त्र स्तम्भ एक दूसरे का सम्मान करेंगे - कई मामलों में सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए सत्तारूढ़ दल के प्रयास से पहले जनमत संग्रह का कोई उपाय खोज कर आगे की प्रक्रिया की जाय। 
१७. जो दल के वरिष्ठ नेता है , उन्हें एक समय के बाद नए लोगों को राजनीति  के लिए प्रशिक्षित कर उन्हें अवसर देने के लिए स्थान स्वयं छोड़ देना चाहिए न कि विद्रोह के स्वर सुनाई देने लगें। सत्तामोह से दूर रहकर भी देश हित में कार्य हो सकता है। 
१८. दलबदल में विश्वास रखने वाले नेताओं को कभी भी विश्वनीय नहीं समझा जाएगा।  
१९  ग्लैमर की दुनियां के सितारों को मतदाता के मध्य लाकर खड़ा करने वाले दल उनके लिए विश्वास दिलाएंगे कि वे खास लोग जनप्रतिनिधि बनेंगे तो ये सारे नियम उनपर भी लागू होने।  उनके छवि को भुना कर संसद में सीटों पर काबिज नहीं होंगे। 
२०. सांसदों की संसद में उपस्थिति पर भी नियमानुसार कार्यवाही होगी।  सरकारी सेवाओं के नियमों  के अनुसार ही निश्चित अनुपस्थिति का प्रावधान रखा जाएगा उसका उल्लंघन करने पर उत्तर देना होगा।  

                              इच्छाओं का कोई अंत नहीं है लेकिन मतदाताओं की इच्छानुसार ही ये तैयार किया है।  इसके आगे और बहुत सी बातें हैं लेकिन एक आम मतदाता - घरेलु महिलायें , छात्र , दुकानदार , श्रमजीवी वर्ग की इसमें सहमति  है। वे बड़ी बड़ी बातें नहीं जानते लेकिन अपने दैनिक जीवन से जुडी बातें जानते हैं और ऐसे लोगों से हर पांच साल बाद दो चार होते हैं।    

3 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक नेताओ के सुपुत्र सुपुत्रियां सरकारी स्कूलो में नहीं पढ़ेंगी और जब तक ये नेता नेतानी सरकारी अस्पतालों में इलाज नही कराएँगे तब तक न तो "स्वराज" आयेगा न ही "सुराज"

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  2. बीजेपी ने अभी तक घोषणा पत्र जारी नहीं किया ..........बड़े नेताओं के पास समय नहीं !!
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    क्या करना ई पत्र वत्र का ....... !! अभी तो पहले लहर चला लें

    ( एक राष्ट्रीय पार्टी की ये हालत !! अगले पाँच वर्ष मे क्या करेगी, ये तक कहने के लिए समय नहीं है !!)

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  3. होना तो ऐसा ही इच्छापत्र चाहिये मगर …………कौन परवाह करता है मतदाता के इच्छापत्र की ………सबसे बडी समस्या ही यही है …………आपका ये इच्छापत्र अपनी फ़ेसबुक वाल पर लगा रही हूँ ।

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.